शादी से पहले और नौकरी पर रखने से पहले हो अनिवार्य मनोवैज्ञानिक परीक्षण: एक जागरूकता की आवश्यकता

जोधपुर, 9 जून 2025:
तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश में रिश्तों और जिम्मेदारियों का दबाव युवाओं पर इतना बढ़ गया है कि वे कभी-कभी मानसिक असंतुलन के शिकार होकर अत्यंत गंभीर कदम उठा लेते हैं — जिनमें आत्महत्या से लेकर हत्या तक जैसे अपराध शामिल हैं। ऐसे में मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग और मूल्यांकन अब कोई विकल्प नहीं, बल्कि एक सामाजिक जरूरत बन चुकी है।
क्रिमिनल और फॉरेंसिक साइकोलॉजिस्ट डॉ. के. प्रियंका शर्मा (USA) का मानना है कि विवाह से पहले मनोवैज्ञानिक परीक्षण को अनिवार्य किया जाना चाहिए, जिससे न केवल दो व्यक्तियों की मानसिक स्थिति स्पष्ट हो, बल्कि उनके परिवारों और भविष्य की पीढ़ियों को भी सुरक्षित रखा जा सके।
आज के युवाओं में क्यों बढ़ रही है मानसिक अस्थिरता?
डॉ. शर्मा के अनुसार, सोशल मीडिया और प्रतिस्पर्धात्मक जीवनशैली ने युवाओं में अधीरता और ऑब्सेशन को बढ़ावा दिया है। वे हर हाल में अपनी इच्छाओं की पूर्ति चाहते हैं, और असफलता की स्थिति में अवसाद या आक्रामकता जैसी प्रतिक्रियाएं देते हैं। ऐसे में जब विवाह या नौकरी जैसे जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय बिना मानसिक समझदारी के लिए जाते हैं, तो परिणाम भयावह हो सकते हैं।
मानसिकता का जुर्म से गहरा संबंध
किसी भी अपराध के पीछे एक मानसिक अवस्था होती है – यह या तो जन्मजात होती है, या बचपन के किसी ट्रॉमा से जुड़ी, या रिश्तों में ठुकराए जाने की पीड़ा से उत्पन्न होती है। दुर्लभ मामलों में यह मानसिक प्रवृत्ति जेनेटिक भी हो सकती है। ऐसे में यदि समय रहते संबंधित व्यक्ति की मानसिक स्थिति का मूल्यांकन हो जाए, तो कई अपराध रोके जा सकते हैं।
सच्ची घटना से सीख
2009 में जोधपुर में एक ऐसी ही घटना सामने आई थी, जहाँ एक युवती, जो साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर से ग्रस्त थी, ने शादी के तीन साल बाद आत्महत्या कर ली। ना तो पति को विवाह से पूर्व इस बीमारी की जानकारी थी और ना ही लड़की के परिवार ने यह बात साझा की। नतीजतन, उस निर्दोष परिवार को समाजिक शर्मिंदगी के साथ-साथ कानूनी सजा भी भुगतनी पड़ी। यह उदाहरण दर्शाता है कि मानसिक स्थिति को छिपाना कितनी बड़ी त्रासदी का कारण बन सकता है।
समाज को चाहिए संवेदनशीलता और जागरूकता
आज आवश्यकता है कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में जागरूकता बढ़े। मानसिक मूल्यांकन को शर्म की नजर से देखने के बजाय इसे जिम्मेदारी और सतर्कता का हिस्सा माना जाए। माता-पिता को भी चाहिए कि वे बच्चों पर विवाह या करियर को लेकर दबाव न बनाएं, बल्कि उनकी मानसिक स्थिति को समझते हुए निर्णय लें।
समाधान क्या हो सकता है?
विवाह से पहले हर युवक-युवती का क्लिनिकल साइकोलॉजिकल एसेसमेंट अनिवार्य हो।
नौकरी पर नियुक्ति से पूर्व कर्मचारियों का मेंटल फिटनेस टेस्ट किया जाए।
स्कूल और कॉलेज स्तर पर ही मेंटल हेल्थ अवेयरनेस प्रोग्राम्स अनिवार्य किए जाएं।
परिवार और दोस्तों को मानसिक समस्या को छिपाने के बजाय, परामर्श और इलाज के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
डॉ. प्रियंका शर्मा कहती हैं:
“आपकी एक पहल किसी की जान बचा सकती है। यदि कोई अपनी तकलीफ साझा नहीं कर पा रहा, तो परिवार और समाज को आगे आकर मदद करनी होगी। मानसिक स्वास्थ्य का परीक्षण कोई शर्म नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी है।”
–डॉ. के. प्रियंका शर्मा (D.A.M., USA), क्रिमिनल एंड फॉरेंसिक साइकोलॉजिस्ट, क्लिनिकल एंड स्प्रिचुअल हिप्नोथैरेपिस्ट GHSC-UK, ABH-USA