राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी वर्ष :साधना से सेवा तक 

 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी वर्ष :साधना से सेवा तक 
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में परम पूज्य डॉ. हेडगेवार ने हिंदू चिंतन के आधार पर हिंदू संगठन के रूप में की थी। प्रारंभिक काल में संघ का प्रमुख कार्य शाखा के माध्यम से व्यक्ति निर्माण था। धीरे-धीरे यह संगठन कार्य पद्धति, रीति-नीति, राष्ट्रभक्ति, अनुशासन और विस्तार से विकसित होकर नई ऊँचाइयों पर पहुँचा है। 1940 तक संघ पूरे देश में अपना विस्तार करने में सफल रहा था। डॉ. हेडगेवार एवं बाद में पूज्य श्रीगुरुजी के नेतृत्व में संघ कार्य को राष्ट्रव्यापी गति मिली।

श्रीगुरुजी के मार्गदर्शन में संघ कार्य केवल शाखा तक सीमित न रहकर समाज के विविध क्षेत्रों तक पहुँचा। उनके नेतृत्व में विश्व हिंदू परिषद, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विद्या भारती, वनवासी कल्याण परिषद जैसे राष्ट्रीय ख्याती प्राप्त संगठन स्थापित हुए, जिन्होंने शिक्षा, श्रमिक, छात्र, किसान और सेवा क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य किए। उनके बाद पू बालासाहब देवरस, पू राजू भैया, पू सुदर्शन जी और वर्तमान में डॉ. मोहन भागवत ने सरसंघचालक के रूप में इस परंपरा को आगे बढ़ाया है।

संघ ने अपने सौ वर्षों की यात्रा में कई कठिनाइयाँ का सामना किया। 1948 में गांधीजी हत्या के झूठे आरोप में संघ पर प्रतिबंध लगा, किंतु न्यायालय ने संघ को निर्दोष सिद्ध किया। 1975 में आपातकाल के समय लोकतंत्र की रक्षा में संघ ने समाज को संगठित कर सत्याग्रह किया। 1992 में बाबरी ढांचा प्रकरण के बाद भी प्रतिबंध झेलना पड़ा, पर हर बार संघ धैर्य और शांति के मार्ग पर चलते हुए समाज का विश्वास अर्जित करने में सफल रहा।

संघ ने केवल संगठन निर्माण ही नहीं किया, बल्कि राष्ट्रहित में हर परिस्थिति में सहयोग दिया। प्राकृतिक आपदाओं — बाढ़, भूकंप, दुर्घटनाओं — के समय सबसे पहले संघ स्वयंसेवक पहुँचकर सेवा में जुट गए। राष्ट्रीय सुरक्षा, हिंदू स्वाभिमान और सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा में हमेशा सक्रिय भूमिका निभाई। संघ स्वयंसेवकों ने भारत माता को विश्वगुरु बनाने हेतु साधना और समर्पण से अपना सबकुछ अर्पित कर किया।

आज संघ का कार्य केवल भारत तक सीमित नहीं है। दसो दिशाओं में फैलकर उसने समाज के हर क्षेत्र में अपनी पहुंच बनाई है। शिक्षा, सामाजिक, सेवा, श्रमिक, किसान संगठन, आर्थिक चिंतन, सांस्कृतिक एवं सुरक्षा — जैसे विषयों में संघ प्रेरित संगठन आज विश्वस्तरीय पहचान बना चुके हैं।

विजयादशमी अक्टूबर 2025 से विजयादशमी अक्टूबर 2026 तक संघ अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। यह केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्मविश्लेषण और समाज परिवर्तन का वर्ष सिद्ध हो, इसलिए संघ इसे एक अवसर के रूप में लेते हुए संघ ने कुछ प्रमुख कार्यक्रम निश्चित हैं — विजयदशमी उत्सव(स्वयंसेवको के एकत्रीकरण), व्यापक गृह संपर्क अभियान, मंडल/बस्ती हिंदू सम्मेलन, खंड सामाजिक सद्भाव बैठक, प्रमुख जन गोष्ठी, अधिकतम शाखा दिवस, युवा सम्मेलन और शालेय विद्यार्थी सम्मेलन भी विशेष कार्यक्रम होंगे।

इन कार्यक्रमों का ध्येय समाज के विविध क्षेत्रों में सकारात्मक परिवर्तन लाना, धर्म-संस्कृति की रक्षा करना और प्रत्येक बस्ती-मंडल में सक्रिय, जागरूक एवं समर्पित स्वयंसेवकों की टोली तैयार करना है।

शताब्दी वर्ष केवल आयोजनों तक सीमित न होकर व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में परिवर्तन का माध्यम बने, इसके लिए संघ ने पाँच विषयों को “पंच परिवर्तन” के रूप में निश्चित किया है —

  1. सामाजिक समरसता
  2. कुटुंब प्रबोधन
  3. पर्यावरण संरक्षण
  4. स्व के भाव का जागरण
  5. नागरिक अनुशासन
    ये पाँच संकल्प संघ के प्रत्येक स्वयंसेवक और समाज के प्रत्येक जागरूक नागरिक के आचरण में सकारात्मक बदलाव लाने का आह्वान करते हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इस शताब्दी यात्रा में संघ उपहास, उपेक्षा, विरोध तीनों चरणों से गुजरते हुए आज सहयोग, सहभाग से स्वीकार्यता में परिवर्तित होकर विराट वटवृक्ष के रूप में हमारे सामने है। संघ ने कभी अपने मूल विचारों से विचलन नहीं आने दिया, बल्कि हिंदुत्व की जीवनदृष्टि पर अडिग रहकर कार्य किया।

यह शताब्दी वर्ष प्रत्येक स्वयंसेवक और समाज के लिए ऐतिहासिक अवसर है। यह केवल कार्यक्रमों की श्रृंखला नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का यज्ञ है। जब हम सब इस साधना में सहभागी बनेंगे, तभी भारत को विश्वगुरु के सिंहासन पर आरूढ़ करने का स्वप्न साकार होगा।

संघ बढता जा रहा है,
सुप्त हिन्दु अस्मिता को फिर जगाकर
देश के प्रति प्रखर भक्ति स्वभाव लेकर
समर्पण से अनुप्राणित प्रखर अनुशासन लिये
व्रत निरन्तर चल रहा है

Admin

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