स्वर संगम संस्थान, लखनऊ ने लखनऊ में विखेरी उत्तराखण्डी सांस्कृतिक कार्यक्रमों की छटा

लखनऊ: स्वर संगम संस्थान लखनऊ द्वारा अपनी लोक संस्कृति के संरक्षण, संवर्द्धन और विकास पर आधारित पारम्परिक एवं पौराणिक लोक कलाओं पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रमों की कुर्मान्चल नगर, लखनऊ में सुन्दर प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हरीश चन्द्र पन्त, अध्यक्ष, उत्तराखण्ड महापरिषद लखनऊ एवं विशिष्ट अतिथियों के साथ दीप प्रजवल्लन कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। सभी अतिथियों को संस्था की ट्रस्टी पुष्पा गैलाकोटी द्वारा अंगवस्त्र, मोमन्टो एवं पुष्प गुच्छ से सम्मानित कर स्वागत किया गया। मुख्य अतिथि ने अपने सम्बोधन में कहा कि स्वर संगम संस्थान द्वारा जिस प्रकार से उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक विरासत को बचाने और उसके प्रचार-प्रसार के लिए कार्य किया जा रहा है, सरहानीय है। संस्थान के इस शानदार कार्यक्रम में कलाकारों द्वारा पुष्पा गैलाकोटी के नेतृत्व एवं निर्देशन में सर्वप्रथम मॉ दुर्गा एवं वाराही की वन्दना प्रस्तुत कर उनकी पूजा की गयी। इसके बाद मॉ नंदा देबी राज जात यात्रा जो कि नौटी गॉव चमोली से शुरू होती है और 280 किमी, की पैदल यात्रा तय कर होमकुंड पहुँचती है, का भी सुन्दर मंचन किया। उत्तराखण्ड की पारम्परिक एवं पौराणिक लोक संस्कृति पर आधारित झोड़ा, चाचेरी, थड़िया की मनमोहक प्रस्तुतियों ने वातावरण को उत्तराखण्डी मय बना दिया। प्रसिद्ध गायक दर्शनन सिंह परिहार, कैलाश सिंह एवं सावित्री द्वारा इन कार्यक्रमों को अपनी आवाज दी साथ ही सुन्दर एकल गीतों की प्रस्तुतियॉ भी दी गयी। कार्यक्रम के अन्त में उत्तराखण्ड का सबसे प्रसिद्ध नृत्य छपेली जिसके बोल थे हिट दे साई मधुली की सुन्दर प्रस्तुती में दर्शक थिरकने लगे। मुख्य कलाकारों में- संदीप सिंह, आशुतोष, महेन्द्र सिंह, धर्मेन्द रावत, आरती बिष्ट, सोनम, ईशा, डौली बिष्ट एवं मेधा जोशी ने अपनी कला के उत्कृष्ट प्रदर्शन से इस कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की। वाद्य यंत्रों में हारमोनियम दर्शन सिंह परिहार, ढोलक रमेश कुमार और बांसुरी पर किशन लाल ने म्यूजिक दिया गया। स्वर संगम का यह सांस्कृतिक आयोजन उत्तराखण्ड की समृद्ध लोक संस्कृति, लोककला, लोकगीत, लोकनृत्य और पारंपरिक विरासत के संरक्षरण एवं संवर्धन की दिशा में एक सार्थक और प्रेरणादायी पहल के रूप में उभर कर सामने आया। संगीत, नृत्य और लोक गीतों की स्वर लहरियों से सजे इस आयोजन ने दर्शकों को भाव विभोर कर दिया। हर प्रस्तुति में पहाड़ की मिटटी की खुशबू, वहॉ की सरलता, संघर्ष और सौन्दर्य की झलक दिखाई दी। यह आयोजन न केवल मनोरंजन का माध्यम बना, बल्कि लोक संस्कृति के प्रति जन मानस में चेतना जागृत करने वाला एक प्रभावशाली माध्यम भी सिद्ध हुआ।